चोटी की पकड़–62

कमरे में सनलाइट जल रही थी। राजा साहब अपनी बैठक में थे। मसनद लगी हुई।


 गाव-तकिए पड़े हुए। एक तकिए का सहारा लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे कि बेयरा सिपाही से खबर लेकर गया। 

कहा, प्रभाकर बाबू आए हुए हैं। राजा साहब ने आदरपूर्वक ले आने के लिए कहा।

 दिलावर बाहर रास्ते के पहरे पर रह गया, प्रभाकर उसी पुलनुमा राह से सरोवर की कोठी को चले। 

कोठी में पहुँचकर राजा साहब का कमरा, अंदर जाने के लिए, बेयरा ने प्रभाकर को दिखा दिया। 


प्रभाकर गए। राजा ने उठकर स्वागत किया और नवयुवक को पास बैठा लिया। स्नेह से कहा, "हम आपसे उम्र में..."

प्रभाकर सिर झुकाये रहे।

"बड़ी जिम्मेवारी है।" राजा साहब ने स्वगत कहा।

प्रभाकर स्थिर भाव से बैठे रहे।

"आपका प्रबँध हो गया है। आप वहाँ चलकर रह सकते हैं।"

प्रभाकर को साहस से प्रसन्नता हुई।

"आप तो हमारे गवैये के रूप में हैं।"

गा लेता हूँ।" प्रभाकर ने सीधे स्वर से कहा।

"कुछ पान?"

"जी नहीं।"

"भोजन तो कीजिएगा?"

"जी हाँ।"

"मांस-मछली?"

"हाँ।"

   0
0 Comments